Monday, January 14, 2008

ग़ज़ल

न गुल-ए-नग़्मा हूं न परदा-ए-साज़
मैं हूं अपनी शिकस्त की आवाज़

तू और आराईश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैं और अंदेशए-हाए-दूर-दराज़

लाफ़-ए-तमकीं फ़रेब-ए-सादा-दिली
हम हैं और राज़हाए सीना-ए-गुदाज़

हूं गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
वरना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़

नहीं दिल में मेरे वह क़तरा-ए-ख़ूं
जिस से मिश्गां हुई न हो गुलबाज़

ऐ तेरा ग़मज़ा-ए-यक क़लम अंगेज़
ऐ तेरा ज़ुल्म-ए-सर बसर अंदाज़

तू हुआ जलवागर मुबारक हो
रेज़िश-ए-सिजदा-ए-जबीन-ए-न्याज़

मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं गरीब और तू ग़रीब नवाज़

असदुल्लाह ख़ां तमाम हुआ
ऐ दरेग़ा वह रिंद-ए-शाहिदबाज़

-- ग़ालिब